Friday, April 25, 2014

उफ्फ़ ये मौसम...

चलो हम चलें उन पहाड़ों की जानिब 
जहाँ सर पे पत्थर सी बरसे न गर्मी 


Sunday, April 20, 2014

अदम

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है 
मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है 


तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के 
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है

Tuesday, April 15, 2014

चाँद और कवि (और गर्मी)

दिन कुछ ऐसा रहता है दहका दहका
चाँद सुकूं देता है कुछ महका महका



Saturday, April 5, 2014

कोयल - बच्चन

कोकिले, पर यह तेरा राग
हमारे नग्न-बुभुक्षित देश
के लिए लाया क्या संदेश ?
साथ प्रकृति के बदलेगा इस दीन देश का भाग ?