Wednesday, May 31, 2017

जॉन एलिया की मई : बोझ

बस फाइलों का बोझ उठाया करें जनाब,
मिसरा ये "जौन" का है इसे मत उठाइए


Thursday, May 25, 2017

जॉन एलिया की मई : सोगनशीं

पत्ते बनकर ऐसा बिखरा वक़्त की पागल आंधी में 
आज मै अपना सोगनशीं हूँ गंगाजी और जमुनाजी


Friday, May 19, 2017

जॉन एलिया की मई : नाम

मैं तो अब शहर में कहीं भी नहीं
क्या मेरा नाम भी लिखा है कहीं 



Friday, May 12, 2017

जॉन एलिया की मई : धतूरा

ग़म न होता जो खिल के मुरझाते,
ग़म तो ये है कि हम खिले भी कहाँ


Sunday, May 7, 2017

जॉन एलिया की मई : खँडहर

लू चल रही है, महव है अपने में दोपहर
ख़ाक उड़ रही है और खँडहर खैरियत से है


Wednesday, May 3, 2017

जॉन एलिया की मई : जान

रूठा था तुझ से यानी खुद अपनी ख़ुशी से मैं 
फिर उसके बाद जान, न रूठा किसी से मैं