बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव, बंधु!
बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!
पूछेगा सारा गाँव, बंधु!
यह घाट वही जिस पर हँसकर,
वह कभी नहाती थी धँसकर,
आँखें रह जाती थीं फँसकर,
कँपते थे दोनों पाँव, बंधु!
मेरा प्रेम
दूर गगन में
उड़ती चिड़ियों सा
होता है।
किसी रीत को माने बिन वो,
सभी लीक का बंधन तोड़े,
उड़ता तेरी ओर सदा ही
तेरी छाया में सुस्ताने
तेरी आँखों का जल पीने
तेरे वक्षस्थल में कुछ
दाने चुग लेगा,
लेकिन तेरे बंधन से भी
बंधना चाहे नहीं जो ऐसा
मेरा प्रेम
दूर गगन में
उड़ती चिड़ियों सा
होता है।
पूरी नज़्म सुनोगी, मेरी आवाज़ में ? अब कैसे सुनोगी, जब सारे पुल ही जला दिए तुमने?
खैर, कभी दिल भटक जाए तो मैं तुमको पुल के उसी वीरान किनारे पर मिलूंगा, जहाँ सब कुछ जल चुका है।।
The place where we met for the first time, oh my dearest bird, is gone forever now!
And all the rest of the places too!
विष्णुपद मंदिर, जहाँ भगवान् विष्णु ने गयासुर को पद-पराजित किया।
जहाँ लोग पिंड-दान हैं अपने पितरों की मुक्ति के लिए।
क्या ऐसा हो सकता है कि अतृप्त पितरों को मुक्ति देने की तरह ही अतृप्त प्रेम का भी श्राद्ध किया जा सके ?
अधूरे प्रेम से मुक्ति का संभवत: ये अंतिम उपाय बचा है।