Sunday, January 31, 2010

Jaipur Literature Festival

Most of my clicks are already shared in my Picasa Album but there was much more than celebrities and celebrations...

The beautiful Durbar Hall, main hall for the events

The audience surfing from Durbar Hall to Baithak to Mughal Tent to Bookstalls

There was free serving of aromatic tea in earthen pots

And those leisurely lunch breaks in warm winter sun

Thursday, January 28, 2010

दरमियानी कैक्टस

दूर तुम तब भी थे
दूर तुम अब भी हो
बदली है बस
दूरी की तासीर

तुम्हारे-मेरे बीच
कभी थीं आम की घनी अमराइयाँ
बौराई हुई
मादक दूरी
अब उग आये हैं बीच
कैक्टस के जंगल
जो तुम तक पहुँचने की
हर लहराती कोशिश को तोड़ देते हैं

यह तीखापन
हो सकता है तुम्हारी मज़बूरी
पर सोचो तो
कौन सा चेहरा सजता है
खरोचों से

Wednesday, January 20, 2010

किस-किस को याद कीजिए

किस-किस को याद कीजिए
किस-किस को रोइए
आराम बड़ी चीज़ है
मुँह ढक के सोइए

Saturday, January 16, 2010

माय नी मैं इक शिकरा यार बनाया

चूरी कुट्टा ता ओ खांदा नाहीं
वे असा दिल दा माँस खवाया
इक्क उड़ारी ऐसी मारी
ओ मुड़ वतनी न आया

ओ माइ नी
मैं इक शिकरा यार बनाया!

Tuesday, January 12, 2010

They don't look at each other anymore!!


A friend said today that my blog has become very sad in thoughts and it should be back to what it was meant to be - a celebration of the worlds to be captured with the-fifth-eye.

I wish that soon life will be back to what it was. I hope that soon my blog will be how it was. We have celebrated the joys of this world together. For the time being, let us celebrate the sadness of this world too... together or not, that is still up to you!!!!

Monday, January 4, 2010

तुम नहीं हो, मैं अकेला हूँ मगर ...

यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो, और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि -
सब कुछ खो गया है -
दिशायें, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं,
युद्धरत में,
तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी