यह तुम्ही हो जो
टूटती तलवार की झंकार में
या भीड़ की जयकार में
या मौत के सुनसान हाहाकार में
फिर गूंज जाती हो, और मुझको
ढाल छूटे, कवच टूटे हुए मुझको
फिर याद आता है कि -
सब कुछ खो गया है -
दिशायें, पहचान, कुंडल-कवच
लेकिन शेष हूँ मैं,
युद्धरत में,
तुम्हारा मैं
तुम्हारा अपना अभी भी
3 comments:
Shouldn't it be 'अभी भी' in the last line?
@ Silent Synkronicity - Thanks and the typo corrected now.
you are welcome ^.^
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