Thursday, January 26, 2012

Desirable level of poverty

In the sixtieth year of the republic, I wish if even the poorest has this level of poverty only. 

Sunday, January 22, 2012

phbbbbbbbbbbbb........

जीभ चिढ़ा दी। 
अब बताओ क्या कर लोगे!! 

Wednesday, January 18, 2012

पियोगे?

तो फिर दो चिलम भर गाँजा ले के आओ। 

Sunday, January 8, 2012

Things I never understand


Petronas Towers, KL Malaysia
I'll never get the logic of such heights.
But then, 
I don't get the logic of this world either. 
What is my point?!!

Wednesday, January 4, 2012

धूप का बस एक टुकड़ा

तुम्हें जाड़ा सताता है?
तुम्हें गर्मी से शिकवा है?
तबीयत 
कोई भी मौसम हो 
कुछ नासाज़ रहती है? 
बड़े नाज़ों की पाली हो 
बहुत नाज़ुक कहानी हो?
अरे छोड़ो! 
उन्हें देखो 
जो पत्तों की 
बना कर छत 
गुज़र करते हैं 
ज़ीस्त अपनी  
अलाव भर की लकड़ी क्या 
जिन्हें चूल्हा भी मंहगा है 
रजाई क्या 
जो बिन कपड़े के 
आधी सिन बिताते हैं 
ज़रा निकलो तो अपनी 
गुनगुनाई से 
इधर देखो 
उठा फेंको 
नफ़ासत के 
ये झूठे खोल 
और सोचो 
कि जब इन्सानियत आधी 
ठिठुरती है अंधेरों में 
अकड़ कर भूख से 
मरती है  
सहराओं में 
शहरों के
तो तुम अपने बदन से 
एक कपड़ा 
दे नहीं सकते? 
तुम अपनी धूप का 
बस एक टुकड़ा 
बाँट कर देखो 
तुम्हारा एक टुकड़ा कम 
तुम्हें इन्साँ बना देगा।  

Sunday, January 1, 2012

बड़ा रंगीन गुज़रे ये बरस इतनी दुआ ले लो


इसी तस्वीर जैसे 
खुशनुमा रंगों 
से भर जाये 
तुम्हारी ज़िन्दगी 
मेरी दुआ 
गर 
उसके घर जाये