अस्तित्व ज्यों हमारा
धरती पे चंद रेखा
इक लहर काल की और
फिर किसने किसको देखा !
जब वो टूटी थी औ छूटी थी जड़ों से अपनी,
उसको जाना था औ थामा था रगों से अपनी।
उसको बस अपना मान रखा था,
जाने क्या उसका नाम रखा था।
सबसे छूटी मेरी बाँहों में रही,
मुझसे छूटी मेरी चाहों में रही।