जब वो टूटी थी औ छूटी थी जड़ों से अपनी,
उसको जाना था औ थामा था रगों से अपनी।
उसको बस अपना मान रखा था,
जाने क्या उसका नाम रखा था।
सबसे छूटी मेरी बाँहों में रही,
मुझसे छूटी मेरी चाहों में रही।
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