रफ़्ता - रफ़्ता ख़तम हुआ सब
ज़र्रा - ज़र्रा वो आशियाना जला
रफ़्ता - रफ़्ता ख़तम हुआ सब
ज़र्रा - ज़र्रा वो आशियाना जला
It's been so long since I have been wishing, thinking, planning to runaway to a place like this - with a waterbody, hills, vast expanse sans folks... if only I had the right folks to runaway with!
आजकल लिखा तो कुछ नहीं जाता, कैमरा भी नहीं उठता।
लेकिन कभी-कभार कुछ यादों के अंगारे जब हाथ जला देते हैं तो किसी और का कलाम बिगाड़ ज़रूर देते हैं हम।
ऐसा हुआ दो बार पिछले दो दिनों में, तो सोचा अकेले क्यों सहें।
हम इस दुनिया से हैं नाराज़ इतने,
यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम !
अब नीचे लिखी बिगाड़ पढ़ो और असली कलाम ढूंढ कर बताओ तो जानें !
मेरी किताब को पढ़ते - पढ़ते
तुमने शायद सोच के मुझको
छोटा सा इक फूल बनाया था।
आ कर देखो, उस पर इक
तितली बैठी है।
फिर से बँधाता क्यूँ है