वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथः कवची शरी।
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि।।
मेरा प्रेम
दूर गगन में
उड़ती चिड़ियों सा
होता है।
किसी रीत को माने बिन वो,
सभी लीक का बंधन तोड़े,
उड़ता तेरी ओर सदा ही
तेरी छाया में सुस्ताने
तेरी आँखों का जल पीने
तेरे वक्षस्थल में कुछ
दाने चुग लेगा,
लेकिन तेरे बंधन से भी
बंधना चाहे नहीं जो ऐसा
मेरा प्रेम
दूर गगन में
उड़ती चिड़ियों सा
होता है।