टूटता भी है डूबता भी है
फिर उभरता है फिर से बहता है
ना समन्दर निगल सका इसको
ना तवारीख तोड़ पायी है
वक्त की मौज पे सदा बहता
आदमी बुलबुला है पानी का
फिर उभरता है फिर से बहता है
ना समन्दर निगल सका इसको
ना तवारीख तोड़ पायी है
वक्त की मौज पे सदा बहता
आदमी बुलबुला है पानी का
No comments:
Post a Comment