Tuesday, November 24, 2009

पुरानी पड़ जाती है दुनिया

यहाँ रोज़ कुछ बन रहा है
रोज़ कुछ घट रहा है
यहाँ स्मृति का भरोसा नहीं
एक ही दिन में पुरानी पड़ जाती है दुनिया।

Sunday, November 22, 2009

तेरी याद

तुझे भूल जाने की कोशिशें
कभी कामयाब हो सकींतेरी याद शाखे-गुलाब है
जो हवा चली तो लचक गयी

Thursday, November 19, 2009

खाली

कुछ नहीं है
ऐसा लगता है कि मेरे पास अब कुछ भी नहीं है
जो भी कुछ था कब का ज़ाया कर चुका हूँ
ज़ीस्त मुझ को जाने कब का खा चुकी है
रफ़्ता-रफ़्ता
बज़्म अपने खात्मे पर आ चुकी है
मय की वो बोतल हूँ
जो पी जा चुकी है

(कुमार पाशी)

Tuesday, November 17, 2009

प्रेम

प्रेम दर असल पेड़ पर
पक्षी का घोंसला है
और घोंसला बनाने का
कोई विधान नहीं होता।


Sunday, November 15, 2009

बाबू मोशाय!

बाबू मोशाय! ज़िन्दगी और मौत ऊपरवाले के हाथ हैं जहाँपनाह। उसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर ऊपरवाले की उंगलियों में बंधी हैं। कब कौन कैसे उठेगा, ये कोई नहीं बता सकता है।

Thursday, November 12, 2009

Life and snakes and ladders

Life is like that... You are at the bottom of your aspirations and suddenly a magic appears - a ladder takes you to the top of the world. You reach so close... and then, there is a snake just before the 'home'. Life is like that...!!!

Wednesday, November 4, 2009

नयनतारा

रात भर सोचता रहा तुझको
ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर महके
A flower that will never be.

P.S. (one day later) - Just realized that this is 'Chandni', not 'Nayantara' (Sadabahaar).

Tuesday, November 3, 2009

मैं ऐसे ही खंडहर चुनता फिरता हूँ (भवानीप्रसाद मिश्र)

या इस खंडहर की समाधि‍ पर बैठ रुदन को गीत बनाऊँ?
(बच्चन)

ये जो डूब रहे हैं धीरे-धीरे
यादों के खंडहर हैं
(अज्ञेय)