ऐसा लगता है कि मेरे पास अब कुछ भी नहीं है जो भी कुछ था कब का ज़ाया कर चुका हूँ ज़ीस्त मुझ को जाने कब का खा चुकी है रफ़्ता-रफ़्ता बज़्म अपने खात्मे पर आ चुकी है मय की वो बोतल हूँ जो पी जा चुकी है
बाबू मोशाय! ज़िन्दगी और मौत ऊपरवाले के हाथ हैं जहाँपनाह। उसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर ऊपरवाले की उंगलियों में बंधी हैं। कब कौन कैसे उठेगा, ये कोई नहीं बता सकता है।
Life is like that... You are at the bottom of your aspirations and suddenly a magic appears - a ladder takes you to the top of the world. You reach so close... and then, there is a snake just before the 'home'. Life is like that...!!!