ऐसा लगता है कि मेरे पास अब कुछ भी नहीं है
जो भी कुछ था कब का ज़ाया कर चुका हूँ
ज़ीस्त मुझ को जाने कब का खा चुकी है
रफ़्ता-रफ़्ता
बज़्म अपने खात्मे पर आ चुकी है
मय की वो बोतल हूँ
जो पी जा चुकी है
(कुमार पाशी)
जो भी कुछ था कब का ज़ाया कर चुका हूँ
ज़ीस्त मुझ को जाने कब का खा चुकी है
रफ़्ता-रफ़्ता
बज़्म अपने खात्मे पर आ चुकी है
मय की वो बोतल हूँ
जो पी जा चुकी है
(कुमार पाशी)
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