प्रेम दर असल चिड़िया का
घोंसला है
पेड़ पर
जिसका रूप न रंग कोई
नियम विधान न मर्यादा।
प्रेम ऐसा ही कुछ
घर है तुम्हारा
मेरे मन में,
जन्म से
जात-पांत से परे
उम्र के बँधन बिना
परदेश-विदेश की सीमा क्या
नियम विधान न मर्यादा।
ऐसा ही कुछ प्रेम तुम्हारा
मेरे मन के घोंसले में
दुबका बैठा है
छोटू सा!
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