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Friday, July 13, 2012
Wednesday, July 11, 2012
Sunday, July 8, 2012
पहाड़ों पर कभी जब टूट कर बरसात होती है....
पहाड़ों पर कभी जब
टूट कर
बरसात होती है
तो पहले बादल घिर आते हैं
दिन में रात करते हैं
कहीं झरने उमड़ पड़ते हैं
कुछ रस्ते नहीं दिखते
हर इक पत्ता निखर जाता है
धुल जाता है बारिश में।
ये सारे सिलसिले तो कैद हैं
इस कैमरे में
आज भी
शोना
मगर किस पर खुले ये राज़
के हर भीगे मौसम में
मुझे तुम याद आती हो
वोही दिन याद आता है
कि जब हम भीगते लौटे थे घर
और मेरी गाड़ी पर
मुझे चूमा था
पहली बार जब तुमने।
कभी हिचकी बहुत आये तो
बस इतना समझ लेना
के फिर से हाथ छू आये
तेरे लबों के निशां कांधे पर!
July 8, 2012
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