पुराने वक्त की यादें
तमाम इस गर्द के पीछे
किसी अंधेरे कोने में
या किसी ताख के नीचे
पड़ी मिलतीं हैं यूँ अक्सर
कि जैसे उस पुराने शहर की
मानूस गलियों से
गुज़रते वक्त
ठोकर
लग ही जाती है
जहाँ बिखरा पड़ा है
आज भी इतना
तुम्हारी याद का सामां
तुम्हारे लम्स के साये!
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