Wednesday, August 29, 2012
Friday, August 24, 2012
The phoenix philosophy
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौरे-ज़मां हमारा
- इक़बाल
Visited Maheshwar (a small town near Indore, MP) few days back and in the retreat palace of Holkars (the last Maratha rulers of the place), found these notes. Notice the part about Aurangzeb the great iconoclast.
I wonder how Hinduism (or the Sanaatan dharma) has survived centuries of oppression and persecution. Amazingly, it still stands tall despite all the marxist-muslim nexus of propaganda. It also has grown in strength by attracting western societies and has sheltered all without attacking anyone in the history of more than ten thousand years. That reminds me of a quote from one of my favorite journalist-commentators - find it below.
"The historic flaw is the belief, at some gut level, that India is a secular country because the minorities want secularism. India is secular not because Muslims need it but because Hindus want it. India is a secular country because Indian Hindus, who constitute the majority, and therefore, have a proportional impact upon the political ethos, have created and defended a Constitution that is a remarkable triumph of reason over the temptations of sectarian passion." - M.J. Akbar
Saturday, August 18, 2012
जीवेम शरद: शतम्
कुछ इस तरह ख्याल तेरा जल उठा कि बस
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में
अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!
जैसे दीया-सलाई जली हो अँधेरे में
अब फूंक भी दो,वरना ये उंगली जलाएगा!
ज़मीं भी उसकी,ज़मी की नेमतें उसकी
ये सब उसी का है,घर भी,ये घर के बंदे भी
खुदा से कहिये,कभी वो भी अपने घर आयें!
इतने लोगों में कह दो आँखों को
इतना ऊँचा न ऐसे बोला करें
सब मेरा नाम जान जाते हैं ।
लोग मेलों में भी गुम हो कर मिले हैं बारहा
दास्तानों के किसी दिलचस्प से इक मोड़ पर
यूँ हमेशा के लिये भी क्या बिछड़ता है कोई?
शोला सा गुज़रता है मेरे जिस्म से होकर
किस लौ से उतारा है खुदावंद ने तुम को
तिनकों का मेरा घर है,कभी आओ तो क्या हो?
ये माना इस दौरान कुछ साल बीत गये है
फिर भी आंखों में चेहरा तुम्हारा समाये हुये है.
किताबों पे धूल जमने से कहानी कहां बदलती है.
तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे
हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में!
कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!!
बे-लगाम उड़ती हैं कुछ ख्वाहिशें ऐसे दिल में
‘मेक्सीकन’ फ़िल्मों में कुछ दौड़ते घोड़े जैसे।
थान पर बाँधी नहीं जातीं सभी ख्वाहिशें मुझ से।
तेरे गेसु जब भी बातें करते हैं,
उलझी उलझी सी वो बातें होती हैं.
मेरी उँगलियों की मेहमानगी, उन्हें पसंद नहीं.
नाप के
वक्त भरा
जाता है
,रेत घड़ी
में-
इक तरफ़
खा़ली हो
जबफिर से
उलट देते
हैं उसको
उम्र जब
ख़त्म हो
,क्या मुझ
को वो
उल्टा नहीं
सकता?
Wednesday, August 15, 2012
चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई
ये दाग़ दाग़ उजाला, ये शबगज़ीदा सहर
वो इन्तज़ार था जिस का, ये वो सहर तो नहीं
ये वो सहर तो नहीं जिस की आरज़ू लेकर
चले थे यार कि मिल जायेगी कहीं न कहीं
फ़लक के दश्त में तारों की आख़री मंज़िल
कहीं तो होगा शब-ए-सुस्त मौज् का साहिल
कहीं तो जा के रुकेगा सफ़िना-ए-ग़म-ए-दिल
जवाँ लहू की पुर-असरार शाहराहों से
चले जो यार तो दामन पे कितने हाथ पड़े
दयार-ए-हुस्न की बे-सब्र ख़्वाब-गाहों से
पुकरती रहीं बाहें, बदन बुलाते रहे
बहुत अज़ीज़ थी लेकिन रुख़-ए-सहर की लगन
बहुत क़रीं था हसीनान-ए-नूर का दामन
सुबुक सुबुक थी तमन्ना, दबी दबी थी थकन
सुना है हो भी चुका है फ़िरक़-ए-ज़ुल्मत-ए-नूर
सुना है हो भी चुका है विसाल-ए-मंज़िल-ओ-गाम
बदल चुका है बहुत अहल-ए-दर्द का दस्तूर
निशात-ए-वस्ल हलाल-ओ-अज़ाब-ए-हिज्र-ए-हराम
जिगर की आग, नज़र की उमंग, दिल की जलन
किसी पे चारा-ए-हिज्राँ का कुछ असर ही नहीं
कहाँ से आई निगार-ए-सबा, किधर को गई
अभी चिराग़-ए-सर-ए-रह को कुछ ख़बर ही नहीं
अभी गरानि-ए-शब में कमी नहीं आई
नजात-ए-दीद-ओ-दिल की घड़ी नहीं आई
चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई
- फैज़ अहमद फैज़
Faiz, one of the greatest revolutionary poets of all times, wrote this on 14-15 August 1947 midnight - when Pakistan was born and India's 'Tryst with Destiny' began.
65 years later, the only thing different is that spirit and passion.
The dawns are still dark - शबगज़ीदा सहर!
Sunday, August 12, 2012
Wednesday, August 8, 2012
A table-full of books is the best thing in life
To sit alone in the lamplight with a book spread out before you, and hold intimate converse with men of unseen generations - such is a pleasure beyond compare. ~Kenko Yoshida
A book is the only place in which you can examine a fragile thought without breaking it, or explore an explosive idea without fear it will go off in your face. It is one of the few havens remaining where a man's mind can get both provocation and privacy. ~ Edward P. Morgan
I would be most content if my children grew up to be the kind of people who think decorating consists mostly of building enough bookshelves. ~ Anna Quindlen
Sunday, August 5, 2012
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