खो गयीं हैं मोहरें कुछ
वो राहें चल नहीं सकता
तुम्हारे साथ जो सोची थीं
जब ये बाज़ी पूरी थी !
फ़क़त अब सोचता रहता हूँ
तुम बिन है बड़ी फीकी
ये बाज़ी अब
हमेशा को अधूरी है।
Post a Comment
No comments:
Post a Comment