कल वसन्त का प्रथम दिवस था....
जानती हो ना कि वसन्त वो ऋतु है जिसमें प्रकृति स्वयं का श्रृंगार करती है - पुष्पों से.
सो मैं भी तुमको प्रतिदिन एक पुष्प अर्पित करूंगा.
अब यही थाती है जो तुमको अर्पित करूँ और तुम नकार न सको.
श्रद्धा-सुमन स्वीकार करना तो देवता की मजबूरी होती है ना.
जानती हो ना कि वसन्त वो ऋतु है जिसमें प्रकृति स्वयं का श्रृंगार करती है - पुष्पों से.
सो मैं भी तुमको प्रतिदिन एक पुष्प अर्पित करूंगा.
अब यही थाती है जो तुमको अर्पित करूँ और तुम नकार न सको.
श्रद्धा-सुमन स्वीकार करना तो देवता की मजबूरी होती है ना.
- कवि और कविता
Hibiscus rosa-sinensis
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