राम राज संतोष सुख, घर वन सकल सुपास।
तरु सुरतरु सुरधेनुमाहि, अभिमत भोगविलास।
खेती वनि विद्या बनिज सेवा सिलिप सुकाज।
तुलसी सुरतरु सरिस सब सुफल राम के राज।
तुम्हारे बिना वनवास में रही अयोध्या में फिर से पधार कर अयोध्या का और अपने भक्तों का उद्धार करो,
हे मर्यादा पुरुषोत्तम !
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