Friday, September 24, 2010

8. यार थे चार

यार थे चार
ले के निकले थे
उड़ान पंखों में
और
आसमान सीने में
चार अब
दुनिया के चार कोनों में
ऊँची-ऊँची उड़ान भरते हैं
मगर है आज भी ज़िन्दा
दिलों में वो जज़्बा
चार सीनों में है बाकी उसी
मासूम सुब्ह का साया


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