Monday, October 19, 2020

उठ समाधि से ध्यान की... उठ चल

It had to happen someday - One of us had to give up. Or to die. And what better day (and time) would there be to give up (or to die) than this! This precise moment. This precise time. 

So here it is... 952 posts and more than a thousand pics... 13 years and some hiatus... hundreds of hours and millions of thoughts... All come to an end today. This precise moment. This precise time. 

I have deactivated my Facebook account after removing almost everything, deleted more than 3/4th of my Quora content, and left Twitter. Other platforms were either already deleted or my presence is obscure. This month and the past have seen a lot of deletion or closure. With the closure of this blog, one more closure completes. 


Some do it swiftly, like a bandaid; some do it casually, like a WhatsApp status, and some do it surreptitiously, like ... you know how! Me? Well, I stretch the closures long and hard... one account each day, one wound each time, one closure each nostalgia! So, with the closure of this blog, one more closure completes. This precise moment. This precise time.

सदा न काहू के रही 

प्रीतम की गल  बाँह,

ढलते ढलते ढल गयी 

सब तरुअन की छाँह !

Wednesday, September 30, 2020

इक लहर काल की और


अस्तित्व ज्यों हमारा 

धरती पे चंद रेखा 

इक लहर काल की और 

फिर किसने किसको देखा !

Thursday, September 24, 2020

A *fake* one


Teach a parrot the terms 'supply and demand' and you've got an economist.
 - Thomas Carlyle

Monday, September 14, 2020

प्रथम चिरन्तन - प्रेम

हिन्दी दिवस पर 
मौन श्रद्धांजलि 
मेरे प्रथम 
चिरन्तन - प्रेम को 



 

Wednesday, September 9, 2020

Bugging Thoughts about a Thought Bug

"I think we are just insects, we live a bit and then die and that’s the lot. 
There’s no mercy in things. There’s not even a Great Beyond. 
There’s nothing."


"Bugs never bug my head. They are amazing. 
It is the activities of humans that actually bug me all the time."

Saturday, September 5, 2020

जाने क्या उसका नाम रखा था

जब वो टूटी थी औ छूटी थी जड़ों से अपनी, 

उसको जाना था औ थामा था रगों से अपनी। 


उसको बस अपना मान रखा था,

जाने क्या उसका नाम रखा था।  


सबसे छूटी मेरी बाँहों में रही, 

मुझसे छूटी मेरी चाहों में रही।  


Wednesday, August 26, 2020

Fire extinguished

बुझ गयी आग इस तरह आखिर 
जैसे वो थी नहीं कभी मेरी  

 

Friday, August 21, 2020

Saturday, August 15, 2020

Nature is also waving our flag


स्वतंत्रता दिवस की अनन्त शुभकामनायें 

Wednesday, August 12, 2020

ललना जसुदा के ...


हाथी घोड़ा पालकी 
जय कन्हैया लाल की 
खीर खायें कंद की 
दुहाई बाबा नन्द की 
मदन गोपाल की 
जय कन्हैया लाल की 

Saturday, August 1, 2020

अब ऐसा भी नहीं होगा


जी भर के रो चुकी हो तुम 
या और भी अभी 
मेरी फुरक़त के 
अश्क़ बाकी हैं ?

उतरा है तैश या
कि रक़ीबों से 
रश्क़ बाकी हैं ?

जी भर के 
रो चुकी हो तुम 
तो सुन लो 
अब के मैं 
पास आने के ख्वाब 
छोड़ चुका,
दूर जाने के 
लिए निकला हूँ !

ज़िन्दगी से नहीं 
बनती मेरी 
मर्ग पाने के 
लिए निकला हूँ !

Tuesday, July 28, 2020

धुंधला पड़ गया सूरज


कोई चमका था
मेरे आसमान में
सूरज की तरह,
भर गया था
ज़िन्दगी को
हरारत से
रौशनी से
और अपने
धनक के
रंगो से !
हर सूरज की
एक उम्र
होती है
शायद
बहुत ही जल्द
इस बार
धुंधला
पड़ गया सूरज !

Sunday, July 26, 2020

May you always find teddy bears in clouds



यूँ ही छोटे छोटे पग से
डगमग डगमग चलना सीखो
अपने दम पर अपने पैरों
गिरना सीखो उठना सीखो

और जब उठना सीख चुको तो
औरों को भी बल देना तुम
इस दुनिया की बहुत समस्या
में से कुछ का हल देना तुम

और हल देते - देते तुमको
भोला दीखे हालाहल में
मन में कुछ कल्मष न आये
भालू देखो तुम बादल में


Tuesday, July 14, 2020

Jelly is not a Fish


समन्दर के अंदर
तो हम भी 
गए हैं 

मगर तुम वहां 
इतनी चुभती 
नहीं थीं।  

Monday, July 6, 2020

Tis the season to miss


तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है 
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है  
(जॉन एलिया)

गोमती पर भटकती है बारिश 
मेरी उदास दशहरी मुझे बुलाती है 
(गुस्ताख़ी मुआफ़)

Thursday, July 2, 2020

एक डिब्बा कहीं बिना ढक्कन


एक डिब्बा था कहीं 
रख के जिसे 
भूल गया हूँ 

एक डिब्बा 
कहीं
बिना ढक्कन 

साथ मिल जाएँ 
अगर दोनों तो 
मज़ा देखो 

हौले से चढ़ती 
मय का फिर 
नशा देखो

...



Monday, June 29, 2020

पहाड़ जैसे पहाड़


चलो 
चढ़ जाएँ 
पहाड़ों पर 
जहाँ से 
पहाड़ 
दिखते हैं 
अपनी पहुँच में, 
पहाड़ जैसे नहीं।  

Thursday, June 25, 2020

45 years ago today

On the night of 25 June 1975
Indira Gandhi suspended the Indian constitution
by implemented emergency
and hung out India's democracy
and it's people
just like this

Saturday, June 13, 2020

Tuesday, June 9, 2020

Somehow just reach

When you took that talk by the strategy prof too seriously
and fell for entrepreneurship 
but now just want to reach somehow 
The:

Sunday, May 3, 2020

सन्नाटा कब तक


निर्जन नव-पथ 
कब तक नाविक 
कब तक सूने द्वार, दिवस सब 
कब तक देख 
दीवारें काटें 
सूने-सूने 
सांझ-सवेरे 
कब तक कलरव 
बिन वन-उपवन 
जीवन उचटा - उचटा 
कब तक 
आखिर यह सन्नाटा 
कब तक ?!

Thursday, April 30, 2020

सुनो सुनती हो न सोनां



तुम्हे तज कर तुम्हारे योग्य भी
अब तो नहीं हम
पर अब यह भिक्ष अंतिम
मांगने फिर से पलट आये
हो संभव यदि तुम्हारे
करुण अंत: से
तो देवी
हमें दो दान
अपने हृदय के
अंतिम कुसुम का।

Tuesday, March 24, 2020

I shall reach thee!

I ran 
I fell
I walked
I was cut
I crawled
I was bruised
I left my body
I became a hue
But I never stopped 
moving
towards you!