Monday, August 31, 2009

बहिरा हुआ खुदाए

कांकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय
ता चढ़ मुल्ला बाँग दे, बहिरा हुआ खुदाए
- कबीर

Friday, August 28, 2009

ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती

सब पे आती है, सबकी बारी से
मौत मुन्सिफ़ है, कम--बेश नहीं
ज़िन्दगी सब पे क्यूँ नहीं आती

Monday, August 17, 2009

तारे

मैं तमाम तारे उठा-उठा के गरीब लोगों में बाँट दूँ
वो बस एक रात को आस्मां का निज़ाम दे मेरे हाथ में

Thursday, August 6, 2009

अकाल और उसके बाद (नागार्जुन)

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।

Sunday, August 2, 2009