Saturday, September 25, 2010

9. वापसी के सफ़र की आखिरी तस्वीर

तमाम धूप आई
साये गये
हम युँही चलते रहे
सफ़र में चलते हुए
रस्तों पर
कुछ एक पल
किये थे कैद
कुछ तस्वीरों में
आखिर:श कैद किये
पल खरच हुये सारे
अब वापस घर जाना होगा
वापसी के सफ़र की
आखिरी तस्वीर लिये


Friday, September 24, 2010

8. यार थे चार

यार थे चार
ले के निकले थे
उड़ान पंखों में
और
आसमान सीने में
चार अब
दुनिया के चार कोनों में
ऊँची-ऊँची उड़ान भरते हैं
मगर है आज भी ज़िन्दा
दिलों में वो जज़्बा
चार सीनों में है बाकी उसी
मासूम सुब्ह का साया


Thursday, September 23, 2010

7. उस रात

अभी भी तारी हैं
उस रात के साये
मेरे ज़ेहन पर यूँ
पच्चीस या छब्बीस की थी
जब तुम मुझसे वाबस्ता थीं
और बीच में कोई और ना था
ना तेरा माज़ी
ना हाज़िर मेरा
एक फ़कत ख्वाब
आकिबत का था
. . . .
और फिर
सब छनक के
टूट गया

Wednesday, September 22, 2010

6. ढूँढ लो मुझको

बड़ी है इतनी ये
पथरीली है
गहरी दुनिया
कोई निशान
अपने होने का
मिलता ही नहीं
तुम्हारे बस में हो
तो तुम ही ढूँढ लो
मुझको
अगर लगे
कोई सुराग मेरा
तो मुझे खबर करना
कि बहुत रोज़ हुए
साये से मिले अपने

Tuesday, September 21, 2010

5. थामे रहना युँही

थामे रहना
युँही सबको
कि कोई
वक्त की धार मे
ना बह जाये
कि अगर छूट गये
हाथ कभी
तो क्या खबर
कि इन सायों के
निशां भी ना मिलें!

Monday, September 20, 2010

4. जुदा

भीड़ थी सायों की
कुछ होश में थे
मदहोश थे कुछ
और उन सब में
एक तुम भी थीं
साथ सबके थीं
मगर
सबसे जुदा!


Sunday, September 19, 2010

3. एक तस्वीर चुरा ली हमने

युँही भटकते
उस आवारा रात में हमने
एक तस्वीर चुरा ली थी ना
किसी के अरमां
तितलियों से दिखते थे
कोई परछाई कुलांचे मारते
हिरन सी थी
वक्त के फ़र्श पर गिरा ऐसे
छनक के चूर हुआ
आखिर:श हर इक साया
हमारे पास मगर आज तक
सलामत है
एक तस्वीर जो
उस रात चुरा ली थी
वक्त से हमने!

Saturday, September 18, 2010

2. बढ़ा के हाथ थाम लो मुझको

बढ़े हुए वो हाथ
बढ़ के रह गये आखिर
अंधेरा इतना
कि दिखे ही नहीं
बढ़े वो हाथ अपने हमें
और जानम
फिर कदम भी बढ़ ही गये।
कभी उस रास्ते आना
तो ज़रा चेक करना
हमारे हाथों की परछाई
वहाँ अब भी है!

Friday, September 17, 2010

1. घूमते-फिरते

घूमते-फिरते
कभी जयपुर में
कभी आबू में
यादों की सड़क पर
तेरी परछाई
रह गयी
जानम

Thursday, September 16, 2010

परछाईयां

Another a-picture-a-day series from tomorrow onwards.
Theme this time is the interplay of light and dark - 'the shadows'.
This time, an added flavor - every post has a poem also, specially written for that picture.
Every 6:19 am for next nine days.
6-19 was the place, where my life experienced a lot of interplay of light and dark.
It was my room number at IIMA.


P.S. - The preparation for the series has already culminated in परछाईयां.