Tuesday, December 30, 2008

पचपन खम्भे लाल दीवारें


किसी छोटी सी बात, किसी की हँसी, किसी के देखने का ढंग, या किसी अपरिचित के कमीज़ के रंग से नील फिर जी उठेगा। अलग होने के बाद रहना राख से ढके कोयलों पर चलना होगा। न जाने कौन सा अंगारा दहकता रह जाये और पाँव जला दे।

पचपन खम्भे लाल दीवारें
ऊषा प्रियम्वदा

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