ज़ुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो

आग चूल्हों मे हर इक रोज़ जलेगी अब तो

भूख के मारे कोई बच्चा नहीं रोयेगा

चैन की नींद हर इक शख्स यहाँ सोयेगा

आँधी नफ़रत की चलेगी ना कहीं अब के बरस

प्यार की फ़स्ल उगाएगी ज़मीं अब के बरस

ओस और धूप के सदमे ना सहेगा कोई

अब मेरे देस में बेघर ना रहेगा कोई

दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है
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