Sunday, November 15, 2009

बाबू मोशाय!

बाबू मोशाय! ज़िन्दगी और मौत ऊपरवाले के हाथ हैं जहाँपनाह। उसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियाँ हैं, जिनकी डोर ऊपरवाले की उंगलियों में बंधी हैं। कब कौन कैसे उठेगा, ये कोई नहीं बता सकता है।

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