दूर तुम तब भी थे
दूर तुम अब भी हो
बदली है बस
दूरी की तासीर
तुम्हारे-मेरे बीच
कभी थीं आम की घनी अमराइयाँ
बौराई हुई
मादक दूरी
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अब उग आये हैं बीच
कैक्टस के जंगल
जो तुम तक पहुँचने की
हर लहराती कोशिश को तोड़ देते हैं
यह तीखापन
हो सकता है तुम्हारी मज़बूरी
पर सोचो तो
कौन सा चेहरा सजता है
खरोचों से
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