पहाड़ों पर कभी जब 
टूट कर 
बरसात होती है 
तो पहले बादल घिर आते हैं 
दिन में रात करते हैं 
कहीं झरने उमड़ पड़ते हैं 
कुछ रस्ते नहीं दिखते 
हर इक पत्ता निखर जाता है 
धुल जाता है बारिश में। 
ये सारे सिलसिले तो कैद हैं 
इस कैमरे में 
आज भी 
शोना  
मगर किस पर खुले ये राज़ 
के हर भीगे मौसम में 
मुझे तुम याद आती हो 
वोही दिन याद आता है 
कि जब हम भीगते लौटे थे घर 
और मेरी गाड़ी पर 
मुझे चूमा था 
पहली बार जब तुमने। 
कभी हिचकी बहुत आये तो 
बस इतना समझ लेना 
के फिर से हाथ छू आये 
तेरे लबों के निशां कांधे पर! 
July 8, 2012
3 comments:
सुन्दर दृश्यांकन!
पहाड़ मुझे भी बेहद भाते हैं .. और पहाड़ की बारिश का तो कोई जवाब नहीं हमारे शहर में ...
बहुत ही सुन्दर फोटो के साथ सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर कोमल अहसास युक्त बहुत सुन्दर रचना...
Post a Comment