Thursday, April 4, 2013

सगन बिन फूल रही सरसों




सगन बिन फूल रही सरसों।
अंबवा फूटे, टेसू फूले, 
कोयल बोले डार-डार,
और गोरी करत सिंगार,
मलनियाँ गुंदवा ले आईं कर सों,
सगन बिन फूल रही सरसों।

 तरह तरह के फूल खिलाए,
ले गुंदवा हाथन में आए।
निज़ामुद्दीन के दरवज्जे पर,
आवन कह गए आशक रंग, 
और बीत गए बरसों।
सगन बिन फूल रही सरसों।
अमीर खुसरो 

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