Sunday, February 9, 2020

बीत गया सब कुछ


कितनी सुबहें बीतीं हैं
उस बालकनी में
कितनी यादें उस गलियारे
से निकली हैं
कितने लम्हे इसी सड़क पर
बुने गए थे
कितने शख्स गए आये
और बीत गए हैं

जिस दर पर थे 
पाँच बरस के किस्से बाँचे 
उनको गुज़रे भी अब 
शायद बरस अट्ठारह बीत गए हैं।  

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