Friday, July 1, 2022

किस्मत जो बिगाड़ी तूने, मैं शेर बिगाड़ूँगा

आजकल लिखा तो कुछ नहीं जाता, कैमरा भी नहीं उठता। 

लेकिन कभी-कभार कुछ यादों के अंगारे जब हाथ जला देते हैं तो किसी और का कलाम बिगाड़ ज़रूर देते हैं हम। 

ऐसा हुआ दो बार पिछले दो दिनों में,  तो सोचा अकेले क्यों सहें। 

हम इस दुनिया से हैं नाराज़ इतने,

यहाँ कारे-मसीहा क्यों करें हम ! 

अब नीचे लिखी बिगाड़ पढ़ो और असली कलाम ढूंढ कर बताओ तो जानें !

 

मेरी किताब को पढ़ते - पढ़ते 

तुमने शायद सोच के मुझको 

छोटा सा इक फूल बनाया था।  

आ कर देखो, उस पर इक 

तितली बैठी है।  



कॉफ़ी फिर कॉफ़ी है 
मैं ज़हर भी पी जाऊं ऐ दोस्त, 
शर्त ये है कोई 
बातों में लगा ले मुझको। 

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