Wednesday, April 3, 2024

गए दिनों की धूप जो कच्चे पापड़ छत पर सूख रहे थे


ये लाइन है मेरी एक नज़्म की पहली लाइन। जिसको पढ़ कर मम्मी - पापा रो दिए थे। 

पूरी नज़्म सुनोगी, मेरी आवाज़ में ? अब कैसे सुनोगी, जब सारे पुल ही जला दिए तुमने? 

खैर, कभी दिल भटक जाए तो मैं तुमको पुल के उसी वीरान किनारे पर मिलूंगा, जहाँ सब कुछ जल चुका है।।

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