Monday, November 18, 2024

खोए हुए अर्थ


ओखली, पुआल, खूँटे, उपले
छोटे-छोटे शब्द बनकर चले गए
एक-एक कर के 
शब्दकोश के भीतर


Saturday, November 9, 2024

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! 

पूछेगा सारा गाँव, बंधु! 


यह घाट वही जिस पर हँसकर, 

वह कभी नहाती थी धँसकर, 

आँखें रह जाती थीं फँसकर, 

कँपते थे दोनों पाँव, बंधु!