Saturday, November 9, 2024

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु!

बाँधो न नाव इस ठाँव, बंधु! 

पूछेगा सारा गाँव, बंधु! 


यह घाट वही जिस पर हँसकर, 

वह कभी नहाती थी धँसकर, 

आँखें रह जाती थीं फँसकर, 

कँपते थे दोनों पाँव, बंधु! 

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