Sunday, March 18, 2012

उम्र के फ़ंदे


सोचा-बांचा तो कुछ भी नहीं 
जीवन का बाना बुन ही गया 
मैं बैठे बैठे तकती रही 
और उम्र के फ़ंदे खुल भी गये 

3 comments:

Richa Chauhan said...

Thoughtful :) !!

deep said...

Amazingly thoughtful...
SUPERLIKE !!!

Sid said...

Thanks Richa :)

Deep - Thanks :)