Sunday, November 7, 2010

अब भी .... बाकी है

ज़िन्दगी बुझ गयी तो क्या
अब भी
तेरी यादों की आग
बाकी है

Monday, November 1, 2010

कभी बुझे ही नहीं

ना एतबार तेरे वादे का
ना भरोसा तेरे तगाफ़ुल पर
तभी तो तेरे रास्ते के दिये
हमसे कभी बुझे ही नहीं

Tuesday, October 19, 2010

..... Birthday to me!!

और इक सालगिरह आयी और बीत गयी
मौत का एक बरस और जी लिया हमने

बकौल गालिब - खुदा बख्शे बहुत सी खूबियाँ थी मरने वाले में

Saturday, October 16, 2010

शुभ नवमी

Once Upon a Time in Ahmedabad Calcutta

तुम्हारे वास्ते इक मूर्ति है
दुर्गा पूजा की
तुम्हारे शहर से ही ली थी और
तुमने सराही थी

Friday, October 8, 2010

या देवी सर्वभूतेषु

शक्तिरूपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

Saturday, September 25, 2010

9. वापसी के सफ़र की आखिरी तस्वीर

तमाम धूप आई
साये गये
हम युँही चलते रहे
सफ़र में चलते हुए
रस्तों पर
कुछ एक पल
किये थे कैद
कुछ तस्वीरों में
आखिर:श कैद किये
पल खरच हुये सारे
अब वापस घर जाना होगा
वापसी के सफ़र की
आखिरी तस्वीर लिये


Friday, September 24, 2010

8. यार थे चार

यार थे चार
ले के निकले थे
उड़ान पंखों में
और
आसमान सीने में
चार अब
दुनिया के चार कोनों में
ऊँची-ऊँची उड़ान भरते हैं
मगर है आज भी ज़िन्दा
दिलों में वो जज़्बा
चार सीनों में है बाकी उसी
मासूम सुब्ह का साया


Thursday, September 23, 2010

7. उस रात

अभी भी तारी हैं
उस रात के साये
मेरे ज़ेहन पर यूँ
पच्चीस या छब्बीस की थी
जब तुम मुझसे वाबस्ता थीं
और बीच में कोई और ना था
ना तेरा माज़ी
ना हाज़िर मेरा
एक फ़कत ख्वाब
आकिबत का था
. . . .
और फिर
सब छनक के
टूट गया

Wednesday, September 22, 2010

6. ढूँढ लो मुझको

बड़ी है इतनी ये
पथरीली है
गहरी दुनिया
कोई निशान
अपने होने का
मिलता ही नहीं
तुम्हारे बस में हो
तो तुम ही ढूँढ लो
मुझको
अगर लगे
कोई सुराग मेरा
तो मुझे खबर करना
कि बहुत रोज़ हुए
साये से मिले अपने

Tuesday, September 21, 2010

5. थामे रहना युँही

थामे रहना
युँही सबको
कि कोई
वक्त की धार मे
ना बह जाये
कि अगर छूट गये
हाथ कभी
तो क्या खबर
कि इन सायों के
निशां भी ना मिलें!

Monday, September 20, 2010

4. जुदा

भीड़ थी सायों की
कुछ होश में थे
मदहोश थे कुछ
और उन सब में
एक तुम भी थीं
साथ सबके थीं
मगर
सबसे जुदा!


Sunday, September 19, 2010

3. एक तस्वीर चुरा ली हमने

युँही भटकते
उस आवारा रात में हमने
एक तस्वीर चुरा ली थी ना
किसी के अरमां
तितलियों से दिखते थे
कोई परछाई कुलांचे मारते
हिरन सी थी
वक्त के फ़र्श पर गिरा ऐसे
छनक के चूर हुआ
आखिर:श हर इक साया
हमारे पास मगर आज तक
सलामत है
एक तस्वीर जो
उस रात चुरा ली थी
वक्त से हमने!

Saturday, September 18, 2010

2. बढ़ा के हाथ थाम लो मुझको

बढ़े हुए वो हाथ
बढ़ के रह गये आखिर
अंधेरा इतना
कि दिखे ही नहीं
बढ़े वो हाथ अपने हमें
और जानम
फिर कदम भी बढ़ ही गये।
कभी उस रास्ते आना
तो ज़रा चेक करना
हमारे हाथों की परछाई
वहाँ अब भी है!

Friday, September 17, 2010

1. घूमते-फिरते

घूमते-फिरते
कभी जयपुर में
कभी आबू में
यादों की सड़क पर
तेरी परछाई
रह गयी
जानम

Thursday, September 16, 2010

परछाईयां

Another a-picture-a-day series from tomorrow onwards.
Theme this time is the interplay of light and dark - 'the shadows'.
This time, an added flavor - every post has a poem also, specially written for that picture.
Every 6:19 am for next nine days.
6-19 was the place, where my life experienced a lot of interplay of light and dark.
It was my room number at IIMA.


P.S. - The preparation for the series has already culminated in परछाईयां.

Tuesday, August 31, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 9

इब्ने-मरियम हुआ करे कोई
मेरे दुख की दवा करे कोई
इब्ने-मरियम - Jesus, The son of Mary

Saturday, August 28, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 8

दिल ढूँढता है फिर वोही फ़ुर्सत के रात-दिन
बैठे रहें तसव्वुरे-जानाँ किये हुए

Tuesday, August 24, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 7

ये फ़ितना आदमी की खानावीरानी को क्या कम है
हुए तुम दोस्त जिसके उसका दुश्मन आस्माँ क्यूँ हो
Destiny need not be an enemy to your friends,
for the mischief of your friendship is enough to ruin home of the one.

Sunday, August 22, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 6

मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा का न पूछ हाल
हर ज़र्रा मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ आबदार था

मौज-ए-सराब-ए-दश्त-ए-वफ़ा ---- वफा के मरुस्थल की मरीचिका
मिस्ल-ए-जौहर-ए-तेग़ ---- तलवार की धार की तरह
आबदारचमकदार"> ---- चमकदार

Wednesday, August 18, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 5

चंद तस्वीरे-बुतां, चंद हसीनों के ख़ुतूत
बाद मरने के मेरे घर से ये सामां निकला

Gulzar - entering his 75th year today
Happy Birth Day Gulzar sahib :)

Sheen Kaaf Nizaam


Nand Kishore Acharya

Saturday, August 14, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 4

काबा किस मुँह से जाओगे 'ग़ालिब'
शर्म तुमको मगर नहीं आती

Tuesday, August 10, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 3

कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तूने हमनशीं
इक तीर मेरे सीने में मारा के हाये हाये

Saturday, August 7, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 2

ये मसाइले-तसव्वुफ़, ये तेरा बयानग़ालिब
तुझे हम वली समझते जो न बाद:ख्वार होता
This mysticism in illustration, this speech of yours Oh Ghalib... You would be understood as an apotheosis, if only you were not a drunkard.

Tuesday, August 3, 2010

बज़्म-ए-ज़िन्दगी बकौल गालिब - 1

गिरिय: चाहे है खराबी मेरे काशाने की
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबाँ होना

meaning - The fate / destiny wants to destroy my abode as wilderness crawls on the walls and doors.

Sunday, July 25, 2010

Duck-Duck karne laga....

When I see a bird
that walks like a duck
and swims like a duck
and quacks like a duck
I call that bird a duck.

Saturday, July 10, 2010

Wednesday, July 7, 2010

सबका कटेगा राम

दिन कटे ना रात कटे ना सुबह कटे ना शाम,
धूप हटे ना छांव हटे ना गम हटे ना जाम,
देखो सबका कटेगा
सबका कटेगा राम, यूँ ही कटता रहेगा,
सबका कटेगा राम

Saturday, July 3, 2010

रात भर याद

रात भर
बूँद - बूँद
गिरता रहा
तेरी यादों का
आस्मां
मुझ पर